Surdas ke pad summary / सूरदास के पद /सूरदास के पद summary
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य :----
सूरदास के पद
( 1 )
जागिए , ब्रजराज कुवर , कंवल - कुशुम फूले ।
कुमुदद संकुचित भए , भृग सता भूले ।
तमपुर खग - रोर सुनहू , बोलत बनराई ।
रौभति यो खरिकनि में , बछरा हित पाई ।
विषु मतीन रवि प्रकास पावत नर नारी ।
सूर स्याम प्रात उटी , अंबुज - कर - पारी ।।
प्रसंग : = प्रस्तुत पद्यांश मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रदिन प्रसिद्ध ग्रंथ ' सूरसागर ' से अवतरित है । सूरदास जी वात्सल्य रस के अनन्य कवि हैं । इस पद में सूरदास जी सो । बालक कृष्ण को माँ यशोदा द्वारा दुलार के साथ कोमल मधुर स्वर में प्रातः होने की बात बताते हुए उन्हें जगाने का वर्णन कर रहे हैं ।
व्याख्या : = मां यशोदा बालक कृष्ण को जगाने के लिए भोर होने के कई प्रमाण देती है । वह बड़े दुलार के साथ संकुचा गई हैं , क्योंकि रात्रि समाप्त हो गई है । चारों तरफ भंवर मंडरा रहे हैं । मुर्गो तथा अन्य पक्षियों का कोत्ताल उसे कहती है . हे ब्रजराज उठ जाओ । देखो कमल के सुन्दर - सुन्दर फूल खिल गए हैं । रात को खिलने वाली कुमुदनियों हर तरफ फैला हुआ है । धन के पेड़ - पौने भी मधुर गीत गाते दिख रहे हैं ।
गाएँ बाड़ों में जाने के लिए रंभा रही है । अपने बछड़ों को दूध पिलाने के लिए जाना चाहती हैं । चन्द्रमा का प्रकाश क्षीण हो गया है अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है तथा चारों ओर सूर्य का प्रकाश फैल गया है । नर - नारी मधुर स्वर में भजन - कीर्तन कर रहे हैं । हे क्याम ! सुबह हो गाई है इसलिए उठ जाओ । हे कमल को हाथ में धारण करने वाले श्री कृष्ण सुबह हो गई है , अब उठ जाओ ।
Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य :--
1. कड़बक
2. पद सूरदास
3. पद तुलसीदास
4.छप्पय
5.कविप्त
7. पुत्र वियोग
8.उषा
10.अधिनायक
12. हार जित
13. गांव का घर
( 2 )
जेंवत स्याम नंद की कनियाँ ।
कछुक खात ,कछु घरनि गिरावत , छवि निरस्वति नंद - रनियाँ ।
बरी , बरा बेसन , बहु भौतिनि , व्यंजन चिविष , अगनियौं ।
डारत , खात , लेत अपर्ने कर , रुचि मानत दपि दोनियों ।
मिस्त्री , दधि , माखन मिस्रित करि , मुख नाक्त छवि पनियों ।
आपुन खात , खात , नंद - मुख नावत , सो छबि कहत न बनियो ।
रस नंद - जसोदा बितसत , सो नहिं तिहूँ मुवनियों ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हो , माँगत सूर जुठनियाँ ।।
प्रसंग : = प्रस्तुत पद्यांश मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ ' सूरसागर ' से अवतरित है । सूरदास जी वात्सल्य रस के अन्नय कवि हैं । इस पद में उन्होंने बालक कृष्ण द्वारा पिता नंद की गोद में बैठकर भोजन करने के दृश्य का वर्णन किया है ।
व्याख्या : = सूरदास जी कहते हैं कि बालक कृष्ण अपने पिता नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे हैं । वे कुछ रखाते हैं , कुछ घरती पर गिराते हैं । माँ यशोदा उनकी ऐसी छवि को देखकर बहुत प्रसन्न हो रही है ।
उनके लिए बेसन से बनी बहियाँ ( बरी ) तथा अन्य कई प्रकार के अनगिनत व्यंजन बनाए गए है । अपने हाथ से कुछ शिशकर कुछ कर , कुछ अपने हाथ में लेकर कृष्ण बात प्रसन्न होते हैं । दही का पान उनको सर्वाधिक प्रिय लगा है । मान लिया सी को मिलाकर मुख में डालते हुए श्रीकृष्ण की छवि देखकर मी यशोना मान्य हो उठती ।
श्री भोजन करते लोक में प्राप्त नहीं हो सकता जो नंद व यशोदा को " मीकृष्ण को भोजन करते देखकर हो रहा है । यह माया भीलन कान के पश्चात् कुल्ला करते हैं तथा श्रीकृष्ण को कुल्ला करवाते हैं । सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के भोजन की कुल मांग रहे हैं । उस जूठन को प्राप्त करना भी वे अपना सोभाग्य मानते हैं ।
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अभ्यास :--
प्रश्न 1. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है ।
उत्तर-सूरदास द्वारा दुलार भरे कोमल - मधुर - स्थर म भोर होने की सूचना देते हुए जमाया रहा है ।
प्रश्न 2 : गायें किस ओर दौड़ पड़ीं ?
उतर - सुबह होते ही गायें अपने बछड़ों को दूध पिलाने के लिए अपनी गौशालाओं में रभाती हुई चारे की तरफ दौड़ पड़ी ।
प्रश्न 3 : प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर - प्रथम पद में सोए हुए बालक कृष्ण को माँ सहोदा द्वारा दुलार भरे कोमल स्वर में मोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है । कृष्ण को विभिन्न संकेतों जैसे - कमल के फूलों का खिलना , पक्षियों का चहचहाना , मुगे का बौंग देना , चन्द्रमा का मलिन होना , गऊओं का रंभाना , रवि का प्रकाशित होना आदि के द्वारा जोर होने के विषय में बताया जा रहा है । इन सबके बारा करण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है । इस घट में विषय - वस्तु अपन , विषण , संगीत एवं भाषा शैली ज्यादि गुण नजर आते हैं।
प्रश्न 4. पठित पर्यों के आधार पर सूर के बात्सल्य वर्णन की विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर - सूर के काव्य के तीन प्रमुख विषय है - विनय भक्ति , वात्सल्य और प्रेम - शृंगार । उनका काव्य इन्हीं तीन भाव वृत्तों में सीमित है । सूरदास वात्सल्य के अद्वितीय कवि हैं । बाल - स्वभाव के बहुरंगी आयाम का सफल एवं स्वाभाषिक चित्रण उनके पाय से विशेषता है । उन्होंने अपने काव्य में बाल सुलभ प्रकृति , जैसे चालक का रोना , स्टना , मचलना , जिद करना आदि प्रवृत्तियों को बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से सजाया है ।
प्रस्तुत पदों में सूरदासजी द्वारा वात्सल्य रस की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया गया है । प्रथम पद में बालक कृष्ण मोग है । माता यशोदा उन्हें दुलार रो जगा रही हैं । वह चहचहाते पक्षियों , कमल के फूलों , रंभाती और दोड़ती हुई गायों के उदाहरण देकर चालक कृष्ण को जगाने का प्रयास कर रही हैं ।
द्वितीय पद में बालक श्री कृष्ण नंद बाबा की गोद में भोजन कर रहे हैं । ये कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं । चालक कृष्ण को विविध प्रकार के व्यंजन दिए जा रहे हैं । उनको मना - मनाकर खिलाया जा रहा है । यहीं पर वात्सल्य रस जपने चरम उत्कर्ष पर है । सूरदासजी लिखते हैं- " जो रस नंद - जसोदा बिलसत , सो नहि तिहुँ भुवनियों
प्रश्न 5. काव्य - सौदर्य स्पष्ट करें
( क ) कठुक खात का परनि गिरावत छवि निरखति नंद - रनियों ।
(ख ) भोजन करि नंद अचमन लीन्हीं मांगत सूर जुठनियो ।
(ग) आपुन खात , नंद - मुख नाचत , सो छवि कहत न बनियाँ ।
उत्तर- ( क ) उपर्युक्त पद्यांश में कवि सूरदासजी बालक कृष्ण के खाने के ढंग का बहुत ही स्वाभाविक व सजीय वर्णन कर रहे हैं । यह पद अनशैली में लिखा गया है तथा इसमें वात्सल्य रस की अभिव्यंजना हुई है । भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है तथा पद गेय एवं लयात्मक प्रवाह से युक्त है । इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
( ख) इस पद में बताया गया है कि बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा उसके हाथ धोते हैं । यह दृश्य देखकर सूरदासजी भक्तिरस में डूब जाते हैं तथा नंदजी से बालक कृष्ण की जूठन मांगते हैं । यह पयांश बज शैली में लिखा गया है । बातल्य रस के साथ - साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति हुई है । सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है । अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है तथा रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है ।
( ग ) प्रस्तुत पयांश में सूरदास जी बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कृष्ण कुछ तो स्वयं खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं । इस शोभा का वर्णन करते नहीं बनता है । यह पद ब्रजशैली में लिखा गया इसमें बात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है । रूपक अलंकार का प्रयोग इस पद में भी हुआ है ।